चकोरी की खेती से किसानों को दोहरा फायदा: फसल में कम मेहनत-लागत, मुनाफा अधिक

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बदायूं जनपद में चकोरी की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ रहा है। बेहटा, डवरनगर, असरासी, सिवाया, निजामाबाद, सिसैया, बिचौला, बादुल्लागंज जैसे कई गांवों में इस खेती को अपनाने से किसान आलू, गन्ना, लहसुन जैसी परंपरागत खेती की तुलना में कम लागत और मेहनत से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं।

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चकोरी की खेती का खास फायदा

चकोरी की खेती का खास फायदा यह है कि इसे जंगली जानवरों का कोई हानि नहीं पहुंचाता है। इस फसल को बुआई अक्टूबर-नवंबर महीने में की जाती है और अप्रैल-मई तक फसल तैयार हो जाती है। इसके उगाने के लिए प्रति बीघा आठ हजार रुपये तक की लागत आती है। एक बीघा में करीब 35 से 40 क्विंटल फसल होती है।

वर्तमान मौसम की बदलती शर्तों के कारण किसानों को अपनी परंपरागत खेती में नुकसान का सामना करना पड़ता है, लेकिन चकोरी की खेती में ऐसा नहीं होता। इससे चकोरी किसानों को दोहरा फायदा मिलता है – पहले उन्हें कम लागत में खेती करने का मौका मिलता है और दूसरे, उचित मेहनत के बाद अधिक मुनाफा होता है।

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चकोरी खेती की शुरुआत

चकोरी खेती की शुरुआत 2018-19 में हुई थी। उस समय 200 बीघा जमीन में यह फसल उगाई जाती थी, लेकिन 2023 में इसकी खेती 1000 बीघा तक बढ़ गई है। चकोरी की खेती में किसानों का संबंध भारतीय कंपनियों हिंदुस्तान लीवर, नेस्ले, और जेपी से है। ये कंपनियां उन्हें बीज देती हैं और फसल का भाव तय कर देती हैं। वर्तमान में कंपनियां प्रति क्विंटल 680 से 700 रुपये का भुगतान कर रही हैं।

चकोरी की खेती के अलावा इसके उपयोग के लिए भी मान्यता है। इसे औषधीय रूप में कैंसर जैसी बीमारियों में भी इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर लोग इसे कॉफी के विकल्प के रूप में प्रयोग करते हैं, क्योंकि यह कॉफी की तरह अच्छे स्वाद में आती है, लेकिन इसमें कैफीन नहीं होता है, जिससे कॉफी के कुछ नकारात्मक प्रभावों को रोकता है।

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चकोरी की खेती के लिए प्रति बीघा बीज

चकोरी की खेती के लिए प्रति बीघा करीब 100 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यह फसल 35 से 50 क्विंटल प्रति बीघा तक की पैदावार देती है। इसके लिए बुआई के समय डीएपी का प्रयोग किया जाता है, लेकिन यूरिया नहीं डाली जाती। इसे नराई जाती है और पूरी फसल के दौरान चार से पांच बार पानी लगाना होता है। किसान इस फसल की पत्तियों को भी पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग करते हैं, जिससे दूध देने वाले पशुओं में दूध की मात्रा बढ़ती है।

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चकोरी की खेती में लागत – मुनाफा

इस खेती में लागत और मेहनत कम होती है और फसल की बिक्री से किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है। प्रति बीघा 8,000 से 8,500 रुपये तक की खर्च आती है, जिससे 14,500 रुपये तक का शुद्ध लाभ होता है। वहीं गेहूं की खेती में प्रति बीघा लगभग 10,400 रुपये का लाभ मिलता है, जबकि उसकी खर्च लगभग 2,500 रुपये होती है। ऐसे में चकोरी की खेती करने से किसानों को 6,100 रुपये तक की बचत होती है।

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चकोरी की खेती का यह नया आयाम बदायूं के किसानों के लिए एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है, जो परंपरागत खेती से उबरकर इस नई खेती को अपना रहे हैं। उन्हें अधिक मुनाफा मिलने के साथ-साथ पर्यावरण के साथ भी संबंधीत होने का फायदा होगा।

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