आलू की खेती में यह पद्धति किसानो को देगी दुगना उत्पादन | Potato farming

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इस आर्टिकल में हम किसानो को आलू की खेती से कैसे दुगना उत्पादन होगा, किस पद्धति का उपयोग करना चाहिए इस बारे में जानेगे।

आलू की खेती आज के समय में सभी लोग कर रहे है। भारत में अन्य सब्जियों की तरह आलू भी बहुत तेजी से सेवन किया जाने वाला एक नकदी फसल बन चूका है।

आलू का दिन प्रति दिन मांग बढ़ते ही जा रहा है। जिससे बाजार में इसके भाव में भी फेरबदल देखने को मिलता है। भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने में की जाती है।

इसकी खेती के लिए मौसम को ध्यान रखना पड़ता है साथ ही इसकी खेती में सिचाई का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है। आलू के कंद जमीन के अंदर विकसित होती है। जिससे इसकी खेती में सिंचाई एक बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।

आलू की खेती में यह पद्धति किसानो को देगी दुगना उत्पादन | Potato farming

आलू की खेती में जैन अक्युरेन सिंचाई पद्धति का उपयोग |

इस पद्धति का उपयोग करने से आलू की खेती के उत्पादन में दुगना फायदा होता है। जैन अक्युरेन सिंचाई पद्धति से 30 % से 40 % जितने पानी की बचत की जाती है।

इस स्प्रिंकल को खेत में 10 x 10 के मीटर की दुरी पर लगाया जाता है। जैन अक्युरेन स्प्रिंकल में छोटे छोटे छेद होते है जिससे फसलों में ज्यादा पानी की आवश्यकता भी नहीं होती है।

इस सिचाई की पध्दति कम समय में कम बिजली का उपयोग करके बड़े पैमाने पर एक सामान मात्रा में सिचाई की जा सकती है। एक बराबर सिचाई करने से आलू की वृद्धि भी एक बराबर होती है।

आलू की खेती को जितना पानी की आवश्यकता होती है इस पध्दति से उन्हे उतना प्राप्त होता है। जिससे यह जल्दी खराब नहीं होता।

जैन अक्युरेन सिंचाई पद्धति से आलू का दुगना उत्पादन करे |

जैन अक्युरेन सिंचाई पद्धति का उपयोग करने से खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहती है। जिससे आलू को जमीन के अंदर विकसित होने में ज्यादा मुश्किल नहीं होती।

साथ ही इस पद्धति का की उपयोग करने से खेत में एक समान सिंचाई होती है। जैन अक्युरेन सिंचाई पद्धति से आलू के रस चूसने वाले कीड़ों में भी कमी देखने को मिलती है।

जैन अक्युरेन सिंचाई पद्धति से ठंडी के समय में कोहरे एवं पाले से फसल को बचाया जा सकता है। इसकी मदद से तापमान को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

जैन अक्युरेन स्प्रिंकल की खास बात यह है की सिंचाई के बाद आप इसे घर में भी लेकर जा सकते है। इसको अधिक देख रेख की जरुरत भी नहीं होती है।

इस तरह आलू की खेती में इसका उपयोग करने से उत्पादन को सरलता से दुगना किया जा सकता है।

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