खाद्य मिट्टी को छोड़ कर अब हवा में होगी खेती | जानिये ऐरोपोनिक खेती कैसे करे

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इस आर्टिकल में ऐरोपोनिक खेती कैसे करे, क्या है, कब करे, किस तरह करे, कौन सी फसल की खेती करे, इसमें लगने वाली लागत, मिलने वाली कमाई, लाभ, नुकसान आदि के बारे में जानेंगे

दिन प्रतिदिन कृषि क्षेत्र में नये नये खोज हो रही है। जिससे कम समय में ज्यादा फायदा हो ऐसे तकनीकों की खोज हो रही है। जिसमे भारत को काफी सफलता भी मिल चुकी है।

भारत में अब इस तरह की पध्दति से आलू की खेती की शुरुआत की गई है जिसमे ना तो जमीन की आवश्यकता होगी ना खाद्य की और ना ही मिट्टी की आवश्यकता होगी।

इस पध्दति में अब हवा में ही आलू की खेती होगी। जिससे किसानो का समय एवं श्रम दोनों की बचत होगी और कम समय में आलू का अच्छा उत्पादन हो जायेगा।

खाद्य मिट्टी को छोड़ कर अब हवा में होगी खेती | जानिये ऐरोपोनिक खेती कैसे करे

जिससे को मुनाफा भी बहुत होगा। इस पध्दति को ऐरोपोनिक खेती के नाम से जाना जाता है। ऐरोपोनिक्स खेती की शुरुआत धीरे धीरे हो चुकी है।

आनेवाले समय में हाइड्रोपोनिक खेती एवं ऐरोपोनिक खेती की डिमांड बढ़ने वाली है क्योंकि इसमें किसानों को बहुत मुनाफा हैं।

ऐरोपोनिक खेती क्या है ? (What is Aeroponic farming ? )

ऐरोपोनिक खेती में किसानों को या जो खेती करना चाहता है उसे न तो खेत तैयार करने पड़ते है, न ही सिंचाई और न जुताई करनी पड़ती है।

इसमें केवल पानी की मदद से फसलों को तैयार किया जाता है। ऐरोपोनिक खेती करने से लोगों को कम समय में ज्यादा उत्पादन प्राप्त होता है।

ऐरोपोनिक खेती यह अभी आधुनिक पध्दति है। ऐसी नई नई पध्दति एवं तकनीकों के बारे में लोगो को जानकारी नहीं होती जिससे ऐसी पध्दति का उपयोग बहुत से लोग नहीं कर पाते है।

खाद्य मिट्टी को छोड़ कर अब हवा में होगी खेती | जानिये ऐरोपोनिक खेती कैसे करे

ऐरोपोनिक खेती कैसे करे ? ( How to do Aeroponic farming ? )

ऐरोपोनिक खेती करने के लिए ऐसी जगह की व्यवस्था करनी पड़ती है। जहाँ सूर्यप्रकाश ना के बराबर आये। साथ ही साथ इसका जो सेटअप होता है उसे खरीदना पड़ता है।

इस पध्दति से आप जिस भी फसल की खेती करना चाहते है तो उसके छोटे छोटे पौध नर्सरी में तैयार कर ले। पौध तैयार हो जाये उसके बाद आपने जो स्थान चुना है वहाँ पर थोड़ी ऊंचाई पर पौध को सेटअप में लटका दे।

क्योकि इस में बिना जमीन और मिट्टी की खेती की जाती है। इसमें जो पौध का विकास हो गए वो हवा में होगा। इसकी जड़ो को बढ़ने के लिए थोड़ी जगह की आवश्यकता होती है। इसलिए थोड़ी ऊंचाई पर लटकाये

अब फसलों की बढ़वार के लिए जो पोषकतत्व आते है उन्हे पानी के माध्यम से जडो तक पहुंचाया जाता है। इनकी जड़े जमीन की सतह तक न पहुंचे इसलिए जालीदार टेबल भी नीचे लगा दिया जाता है।

इसप्रकार समय समय पर पोषकतत्वो को फसल की जड़ो में पहुँचाकर उनका उत्पादन किया जाता है।

ऐरोपोनिक खेती में कोई भी फसल किसी भी समय उत्पादित कर सकते है। इसमें मौसमो का फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

और पढ़े : ऑर्गेनिक खेती क्या है

ऐरोपोनिक खेती की लागत और कमाई ( Cost and Earning of Aeroponic farming )

ऐरोपोनिक की खेती यह आधुनिक तकनीक है परन्तु इसमें ज्यादा लागत नहीं लगती है। लेकिन यदि कमाई की बात करे तो इस तकनीक से खेतो के मुकाबले दो गुना या तीन गुना फायदा होता है।

जैसे की यदि खेत में एक बार आलू की फसल तैयार हुई तो उतने ही समय में इस तकनीक से आलू की तीन बार फसल तैयार हो जाती है।

खास बात तो यह है की इसमें आलू के सड़ने या खराब होने की संभावना नहीं होती। जमीन की खेती में आने वाले खर्च के मुकाबले ऐरोपोनिक खेती में खर्च बहुत कम होता है। जिससे लोगो का फायदा ही फायदा है।

ऐरोपोनिक

ऐरोपोनिक खेती में कौन कौन से फसल की खेती हो सकती है ? (Which crop can be cultivated in Aeroponic farming ? )

ऐरोपोनिक खेती में अधिकतर पत्ते वाले पौधो की खेती हो सकती है। साथ ही साथ जो छोटे पौधे हो उनकी भी खेती इस तकनीक की मदद से हो सकती है।

जैसे ऐरोपोनिक खेती से आलू, टमाटर, पत्तेवाले साग ,खीरा, स्ट्रॉबेरी तथा अनेक जड़ी बूटियों की हम खेती कर सकते है।

और जानें : हाइड्रोपोनिक खेती कैसे करें

ऐरोपोनिक खेती के लाभ (Advantage of Aeroponic farming )

  • ऐरोपोनिक खेती में पारंपरिक खेती की तुलना में ज्यादा उत्पादन होता है।
  • ऐरोपोनिक खेती यह आधुनिक समय की खेती है
  • इसका सेटअप एक बार खरीद लो तो कई सालो चलता है। जिससे इसमें खर्च कम आता है।
  • ऐरोपोनिक खेती से पानी, जमीन एवं मिट्टी की भी बहुत बचत होती है।
  • इस तकनीक से किसानो को या जो भी इसका उपयोग करेगा उसे आर्थिक रूप से भी बहुत फायदा होगा।

ऐरोपोनिक खेती की हानि (disadvantage of Aeroponic farming )

  • ऐरोपोनिक खेती का सेटअप थोड़ा महंगा होता है। जिससे सेटअप की लागत ज्यादा होती है।
  • यह खेती आधुनिक समय की है जिससे इनका उपयोग करने के लिए टेक्निकल ज्ञान का होना भी बहुत जरुरी होता है।
  • इस तकनीक में पोषकतत्व सीधे जड़ो तक पहुंचाने के लिए बिजली की आवश्यकता लगती है। जिससे बिजली का खर्च भी बढ़ जाता है।

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