धान में कंडुआ रोग कैसे होता है | धान में कंडुआ रोग की दवा

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धान में कंडुआ रोग कैसे होता है, फसल में कंडुआ रोग के लक्षण और प्रकोप से बचाव के उपायों के साथ ही धान में कंडुआ रोग की दवा पर चर्चा की गई है।

धान में कंडुआ रोग कैसे होता है

धान की फसल में बाली निकलने के समय, जब वातावरण में अधिक नमी होती है और बादल आकाश को आवरण करते हैं, तो इस प्रकार की परिस्थितियों में धान की बालियों पर कंडुआ रोग (false smut) के बीजाणु का प्रकोप हो सकता है। यह रोग अस्टीलेजीनोइडिया नामक वायरस अथवा कवक द्वारा उत्पन्न होता है। इस रोग को धान का हल्दी रोग भी खा जाता है।

धान में कंडुआ रोग

बादलों के साथ ही नमी (humidity) का बढ़ा हुआ स्तर, यह रोग के प्रसार के लिए अनुकल परिस्तिथि पैदा करता है। जिससे यह रोग का तेजी से प्रसार होता है। इस रोग के परिस्थिति में धान के प्रभावित बालियों पर पीले रंग के पाउडर की आवृत्ति दिखाई देती है, जो रोग के प्रकोप को निश्चित करती है।

इस रोग के प्रसार से, प्रभावित दाने न केवल कमजोर हो जाते हैं, बल्कि उनका वजन भी कम हो जाता है, जिससे फसल की उपज पर असर पड़ता है।

फसल में इस रोग के लक्षणों की पहचान के बाद, तुरंत कार्रवाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, ताकि फसल की सुरक्षा और उपज में कोई नुकसान नहीं हो।

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false smut balls

धान में कंडुआ रोग के लक्षण

  • धान का दाना पीले फलदार पिंडों के समूह में परिवर्तित हो जाते है।
  • फूलों वाले हिस्सों पर मखमली बीजाणुओं की वृद्धि होती है।
  • संक्रमित अनाज में मखमली दिखने वाले हरे रंग के स्मट बॉल्स (जीव) होते हैं।
  • स्मट बॉल पहले छोटी दिखाई देती है और धीरे-धीरे 1 सेमी के आकार तक बढ़ती है।
  • यह पत्तों तथा धान की गुच्छों के बीच में दिखाई देता है और फूल के भागों को घेरते है।
  • धान के गुच्छे में केवल कुछ दाने ही आमतौर पर संक्रमित होते हैं और बाकी सामान्य होते हैं।
  • जैसे-जैसे कवक की वृद्धि तेज होती है, स्मट बॉल फट जाती है और नारंगी फिर बाद में पीले-हरे या हरे-काले रंग में बदल जाती है।
  • संक्रमण आमतौर पर प्रजनन और पकने के चरण के दौरान होता है, जिससे धान की गुच्छों में कुछ दाने संक्रमित हो जाते हैं और बाकी स्वस्थ रह जाते हैं।
धान में कंडुआ रोग स्मट बॉल्स

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धान में कंडुआ रोग से बचाव

धान में कंडुआ रोग से बचने के विभिन्न उपायों को निचे निम्नलिखित तौर पर बताये हुए है।

धान की खेती से पहले बचाव के तरीके

  • धान में कंडुआ रोग से बचने के लिए खेती में उपयोग किये जा रहे बीज, स्वस्थ फसल से चुने गए रोगमुक्त बीज होने चाहिए।
  • बीजों को खेती में उपयोग करने से पहले कार्बेन्डाजिम 2.0 ग्राम/किलो की मात्रा में लेकर बीजों का उपचार करना चाहिए।
  • कीट-पतंगों पर नियंत्रण रखें।
  • संक्रमित पौधों को खेती के दौरान ही दूर करें।

धान की खेती के दौरान बचाव के तरीके

  • धान की खेती के लिए अच्छी किस्मो का उपयोग करें जिसकी रोग के प्रति सहनशीलता अधिक हो।
  • सिंचाई कैनाल को साफ़ रखे, साफ़ पानी का उपयोग करें।
  • कटाई के समय रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए ताकि स्क्लेरोटिया खेत में न गिरे। इससे अगली फसल में रोग से नियंत्रण मिलता है।
  • नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक के अधिक प्रयोग से बचना चाहिए।
  • पुआल एवं ठूंठ का उचित विनाश।

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धान में कंडुआ रोग की दवा

धान में कंडुआ रोग की दवा के नाम निचे निम्नलिखित है।

ChemicalsProportion
Copper Oxychloride2.5 g/litre
Propiconazole1.0 ml/litre 
Carbendazim2.0g/kg
Hexaconazole1ml/lit
Chlorothalonil2g/lit
Captafol
Fentin Hydroxide
Mancozeb
  • फंगल संक्रमण को रोकने के लिए बूट लीफ और दूधिया अवस्था में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम/लीटर या प्रोपिकोनाज़ोल 1.0 मिली/लीटर का छिड़काव अधिक उपयोगी होगा।
  • कार्बेन्डाजिम 2.0 ग्राम/किलो से बीजोपचार करें।
  • कल्ले फूटने और फूल आने से पहले की अवस्था में, हेक्साकोनाज़ोल 1 मि.ली./लीटर या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम/लीटर की दर से छिड़काव करें।
  • उन क्षेत्रों में जहां रोग के कारण उपज हानि हो सकती है, कैप्टान, कैप्टाफोल, फेंटिन हाइड्रॉक्साइड और मैन्कोजेब लगाने से कोनिडियल अंकुरण को रोका जा सकता है।
  • टिलरिंग और प्रीफ्लावरिंग चरणों में, कार्बेन्डाजिम कवकनाशी और कॉपर बेस कवकनाशी का छिड़काव रोग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकता है।

Reference: Tamil Nadu Agriculture University

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